
निकाय चुनाव: जातीय समीकरण में दब गया विकास का मुददा, ध्रुवीकरण से कुर्सी हासिल करने की कोशिश
आजमगढ़- डेस्क- रिपोर्ट- शैलेन्द्र शर्मा
आजमगढ़। विधानसभा चुनाव में आजमगढ़ में बुरी तरह मात खाने वाली भाजपा नगर पालिका में सत्ता बचाने की जद्दोजहद में जुटी है। वहीं सपा और बसपा पहली बार खाता खोलने के लिए बेचैन हैं। राजनीतिक दलों की सत्ता की भूख के आगे विकास का का मुद्दा गौण हो गया है। सत्ता हासिल करने के लिए ध्रुवीकरण का खेल खेला जा रहा है।
बता दें कि नगरीय क्षेत्र में मजबूत होने के बाद भी बीजेपी को यहां हमेशा संघर्ष करना पड़ा है। पहली बार 1995 में यहां बीजेपी की माला द्विवेदी यहां नगर पालिका अध्यक्ष चुनी गई थी। इसके बाद वर्ष 2000 में हुए चुनाव में निर्दल गिरीश चंद श्रीवास्तव ने सीट पर कब्जा जमाया। गिरीश ने लगातार दो बार सीट पर कब्जा जमाया। वर्ष 2011 में गिरश के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी शीला श्रीवास्तव ने जीत हसिल की। बाद में वे बसपा में शामिल हो गयी। वर्ष 2012 में हुए आम चुनाव में एक बार फिर बीजेपी को शहर की सत्ता हासिल हुई। इंदिरा जायसवाल नगरपालिका अध्यक्ष चुनी गई। अब एक बार फिर चुनाव चल रहा है। पिछले तीन साल में जिस तरह सफाई, कूड़ा निस्ताण, पानी आदि समस्याओं को लेकर शहर के लोगों ने आंदोलन किया उससे लगा कि यह चुनाव पूरी तरह चुनाव पर विकास के मुद्दे पर आधारित होगा। आम आदमी चाहता भी है कि चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा जाय लेकिन राजनीतिक दल इसके उलट पूरा ध्यान धु्रवीकरण पर केंद्रित किये हुए है। बसपा से चुनाव की तैयारी कर रहे सुधीर सिंह को दलित और क्षत्रिय मतों की लामबंदी पर भरोसा है तो सपा पदमाकर लाल वर्मा को टिकट देकर यादव, मुस्लिम और स्वर्णकार मतों के भरोसे सत्ता हासिल करने की जुगत में है। रहा सवाल भाजपा का तो सपा बसपा की काट खोजने के लिए वह एक बार फिर व्यवसायी पर दाव लगा सकती है। पार्टी सूत्रों की मानें तो पार्टी को भरोसा है कि इस विरादरी का प्रत्याशी होने की स्थित में व्यवसायी वर्ग तो उनके साथ होगा ही साथ ही सवर्ण और अदर बैकवर्ड मत उन्हें लगातार दूसरी बार कुर्सी पर काबिज करा देगा। वैसे इन दलों के सबसे बड़ी मुसीबत निर्दल प्रत्याशी शीला श्रीवास्तव है, जिनके पति का शहर में बड़ा जनाधार है और कायस्थ हमेशा उनके साथ रहा है। दलितों के बीच में भी इस परिवार की लंबी पैठ रही है। शीला के समर्थक भी मान रहे है कि वे आसानी से चुनाव निकाल लेंगी। कारण कि सपा का नाराज खेमा भी अंदर खाने से शीला की मदद कर रहा है। यही वजह है कि सभी दल ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं। कारण कि उन्हें पता है कि मतों का विखराव उनके मंसूबे पर पानी फेर सकता है।
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