
चाईना की चमक से भुखमरी के कगार पर प्रदेश के कुम्हार
पूर्वांचल डेस्क :- रिपोर्ट रानी त्रिपाठी (गाजीपुर)
Gnewspurvanchal :- दिवाली में कुम्हार जीवन भर दूसरों के घर को ही रौशन करने का काम करते है। जिस तरह से चिराग तले हमेशा अंधेरा ही होता है ठीक उसी तरह हजारों-लाखों लोगों के घरों को दियों की रोशनी से रौशन करने वाले कुम्हार का घर अंधेरे में डूबा हुआ है। क्योंकि चाईना समानों की चमक में कुम्हार अपने वजूद को खोते जा रहे है। हर साल उन्हें दीपों के त्योहार दिवाली में इस अंधेरे को दूर करने की एक किरण नजर आती है, लेकिन समय के साथ-साथ हाईटेक सेलिब्रेशन के चलते ये एक किरण भी बोझिल होती जा रही है। इस दिवाली पर लोगों ने अपनी राय देते हुए कहा कि देश में चाईना निर्मित प्रोडक्टों पर सरकार को रोक लगाना चाहिए और दिवाली को पारंपरिक तरीके से दीपों को जलाकर मनाना चाहिए और दियाली से दिवाली मनाने के लिए लोगों को आगे आना चाहिए। ताकि कुम्हारों के घर भी रौशनी हो सके। हालांकि कुंभारों के लिए मोमबत्ती व झालर ने बेड़ा गर्क किया। जिससे भुखमरी के कगार पर जीवन यापन करने को मजबूर है। और अपनी पहचान के लिए तरस रहे है। इसबार की दिवाली में लोगों ने कहा कि सरकार को चाहिए कि देश का विरोध करने वाले पाकिस्तान और चाइना के प्रोडक्ट का आयात बंद करा देना चाहिए। क्योंकि चाईना अब हमारे धर्म पर भी हमला बोल रहा है। दिवाली में मिट्टी के भगवान गणेश, लक्ष्मी की पूजा होती है। पूजन करने के बाद उनका विसर्जन भी होता है लेकिन चाईना निर्मित फेंगसूई भगवान गणेश और लक्ष्मी को प्लास्टिक का बना कर हमारे पारंपरिक श्रद्धा को चोट पहुंचाने का काम कर रहे है। हालांकि इस बार की दिवाली में चाईना प्रोडक्टों की बिक्री में काफी कमी आई हुई है।


भुखमरी के कगार पर जीने को मजबूर कुंभारों का हाल जानने के लिए पत्रिका न्यूज पहुंची। पत्रिका ने कुंभारों के स्थिति का जायजा लेने गाजीपुर के सदर कोतवाली इलाके के सहलाबाद और शहर में दिवाली पर्व पर मिट्टी के दिये और गणेश लक्ष्मी बना रहे कुंभारों अखिलेश प्रजापति और निर्मला देवी ने बताया कि जितनी मेहनत करनी पड़ती है, उसके हिसाब से मेहनताना नहीं मिलता है. दीपावली में दियाली का धंधा भी मंदा हो गया है. इस पर चाइनीज झालर व मोमबत्ती ने कब्जा कर लिया है पहले के मुकाबले में बहुत कम दियाली का आर्डर मिलता है। हालांकि रसदार मिट्टी के रेट आसमान पर है। मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए रसदार मिट्टी की जरुरत पड़ती है जब से गवर्नमेंट ने मिट्टी के खनन पर रोक लगा दी है. तभी से मिट्टी के रेट आसमान पर पहुंच गए हैं पहले एक ट्राली मिट्टी 500 से 800 रुपए के बीच मिल जाती थी. अब एक ट्राली मिट्टी 1000 से 1500 रुपए के बीच में मिलती है. अखिलेश प्रजापति ने बताया कि मेहनत जिस तरह से करनी पड़ती है, उसके अनुसार 100 रुपए की भी इनकम नहीं हो पाती है इसमें पूरा परिवार भी लगा रहता है। उन्होंने बताया कि जब रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव थे तब रेलवे में कुल्हड़ की सप्लाई कराते थे। उनके हटने के बाद से फिर से प्लास्टिक के गिलास का प्रचलन बढ़ गया। जिससे हम कुंभारों को गुजारा करना भी मुश्किल हो गया है। वहीं निर्माला ने बताया कि चुनाव के दौरान तमाम नेता लोग वोट मांगने आते है और हम कुंभारों से हमारे व्यवसाय को बढ़ाने का वादा भी करते है लेकिन चुनाव जीतने के बाद भी वो वादा निभाना तो दूर हमारे दरवाजे पर झांकने तक नहीं आते है। हालांकि कि हमारे व्यवसाय को बढ़ाने के लिए न तो केंद्र सरकार और न ही प्रदेश सरकार आगे आ रही है।


मिट्टी के अभाव और महंगाई में जहां एक तरफ दिया का बनना कम हो रहा है। वहीं मिट्टी के गणेश-लक्ष्मी की ही दीपावली में पूजा की जाती है, लेकिन कुम्हारन टोला के श्याम नाथ प्रजापति ने कहा कि इसमें मेहनत ज्यादा पड़ती है. लागत भी ज्यादा आती है. फिनिशिंग अच्छी न हुई तो फिर पूरी मेहनत पर पानी फिर जाता है। उन्होंने कहा कि मिट्टी के अभाव में अब आगे गणेश लक्ष्मी की मुर्ति बना पाना मुश्किल होगा। गांव क्षेत्र में मिट्टी की उपलब्धता तो किसी तरह से हो जाता है लेकिन शहरी इलाके में काफी मुश्किल हो रहा है। सरकार एक तरफ जहां पोखरे को चिन्हीत कर सुरक्षित कर मछली पालन का कार्य कर रही है। जिससे मिट्टी मिलना काफी मुश्किल हो रहा है। मुर्ति बनाने के लिए चिकनी मिट्टी की आवश्यकता होती है वो हमे नहीं मिल पा रही है। वहीं उन्होंने मुर्ति रंगने को लेकर रंग पर कहा कि रंग 50 फीसदी केमिकल युक्त मिल रही है। मिट्टी के बर्तन पकाने के लिए ईधन भी महंगे हो गए है। सरकार हमलोगों के व्यवसाय पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। स्थिति ये हो गई है कि हम लोग भुखमरी के कगार पर है। वहीं सुधीर पाण्डेय ने बताया कि दिवाली को पारंपरिक ढंग से मनाएगें। चाईना निर्मित झालर, लाईट और अन्य वस्तुओं का इस्तेमाल नहीं करेगें। लेकिन लोगों को भी चाहिए कि देश का विरोध करने वाले चाईना देश के प्रोडक्ट का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
महंगाई की मार और मिट्टी के अभाव में अपनी पहचान खोते कुंभार समाज अब अपने पुश्तैनी काम की शाख को बचाने के लिए मजबूर है। इस समाज को केंद्र व प्रदेश सरकार से मदद की दरकार है। जिससे ये अपना पुश्तैनी धरोहर को जीवित रख सके।
You must log in to post a comment.