
गुरू निराकार ईश्वर का साकार रूप होता है – स्वामी ब्रम्हेशानन्द
आजमगढ़-डेस्क-रिपोर्ट-बृज भूषण रजक-तहसील मेहनगर
गोरखपुर से आये कथावाचक स्वामी ब्रम्हेशानन्द जी ने गुरू महिमा के बारे मे बताते हुये कहा कि इस दुःख रूपी संसार से पार करने वाला बश एक ही शक्ति है वह है गुरू। एक ब्रह्मनिष्ठ गुरू जब जीवन में आता है तो वह संासारिक वस्तुओं को ही प्राप्त नहीं कराता, वह तो जन्मांे-जन्मों के पाप कर्मों को काटकर परम शान्ति के द्वार तक पहुंचा देता है। समस्त वेदों, शास्त्रों, ग्रंथों में महापुरूषों ने गुरू की महिमा गाते-गाते थक गये किन्तु गुरू की महिमा के आगे नेति नेति कहकर झुक गये। गुरू निराकार ईश्वर का साकार रूप होता है जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को मानव तन में समेट कर रखता है। संसार में अनेकों संत हुये जो मूर्ति पूजक के प्रबल समर्थक थे और अपनी अखण्ड भक्ति के बल पर मूर्तियों से साक्षात् शक्ति को प्रकट भी कर लेते थे किन्तु उनके जीवन में उन शक्तियों की पे्ररणा से जब कोई ब्रह्मनिष्ठ गुरू का पदार्पण हुआ तो वे उनके तत्व स्वरूप को जान पाये और भक्ति के परम लक्ष्य को प्राप्त कर लिये। जिनमें रामकृष्ण परमहंस, नामदेव, मीराबाई इत्यादि संतो ने सर्वप्रथम मूर्तियों में ही ईश्वर को ढूढ़ते रहे और अन्त में गुरू की कृपा से उनके तत्व स्वरूप को जाना। आज मनुष्य किसी प्रमाणिक एवं वैज्ञानिक ज्ञान के बिना भक्ति तो खूब कर रहा है किन्तु दिनों दिन गर्त में डूबता चला जा रहा है। क्योंकि उसके जीवन में कोई पूर्ण सन्त नहीं मिला है। जब जीवन में कोई पूर्ण सन्त आता है तो वह इस मानव शरीर के भीतर ही ईश्वर के प्रकाश तत्व का प्रत्यक्ष अनुभूति करा देता है ंजो एक ब्रह्मनिष्ठ गुरू की पहचान होती है। गुरू की पहचान करने के लिये उन्होंने बताया कि आज संसार में गुरूओं की भरमार लगी है जिसमें नकली और असली का भेद करना बहुत ही कठिन है। किन्तु जब हम किसी भी सन्त के पास जायें तो उसके बाहरी भेष-भूषा को न देखते हुये उससे बश दो प्रश्न करें- 1. क्या आपने ईश्वर को देखा है ? 2. क्या हमें भी ईश्वर को दिखा सकते हैं ? अगर वह संत कहता है कि मैने ईश्वर को देखा है, और तुम्हंे भी दिखा सकता हूं। और तत्क्षण वह ऐसा करके दिखा दे तो ऐसा गुरू धारण कर लेना चाहिये। अन्यथा उसके बातों और पाखण्डों में नहीं प़ड़ना चाहिये।
कार्यक्रम का संचालन करते हुये महात्मा जी ने बताया कि प्रभु श्री रामचन्द्र जी वनवास जाते समय जब गंगा तट पर पहुंचे तो सभी नाविक उन्हें अपने पास बुलाने लगे और उस पार उतारने के लिये अलग-अलग प्रयास करने लगे। किन्तु केवट चुपचाप नौका पर बैठा रहा। अन्त में प्रभु श्रीराम केवट के पास जाते हैं और पूछते हैं कि क्या तुम हमें गंगा के उस पार नहीं उतार सकते ? केवट भीतर ही भीतर मुस्कुराता रहा। केवट ब्रह्मज्ञानी होने के कारण वह अपने और प्रभु श्रीराम के संबंधों को भलिभांति जानता था। जिसके कारण उसके न बुलाने पर भी श्री रामचन्द्रजी को उसके पास जाना पड़ा और केवट से याचना करनी पड़ी।
पांच दिवसीय कथा यज्ञ का भण्डारा के साथ समापन हुआ।
इस अवसर पर अच्छेलाल, शिवधारी यादव, मुंशी, शिवकुमार, क्षतिप्रकाश, आनन्द, राधेश्याम आदि लोग उपस्थित रहे।
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